Origin and Development of Legal Profession - विधि पेशे की उत्पत्ति और विकास
Origin and Development of Legal Profession - विधि पेशे की उत्पत्ति और विकास
उत्पत्ति (Origin):
भारत में विधि व्यवसाय (Legal Profession) की उत्पत्ति ब्रिटिश शासन के दौरान हुई। इससे पूर्व, अर्थात् हिंदू शासन एवं मुगल काल में विधि व्यवसाय के अस्तित्व के कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलते। उस समय न्याय प्रशासन राजा के हाथों में होता था और राजा का दरबार देश की सर्वोच्च अदालत माना जाता था। राजा के आदेश के विरुद्ध कोई अपील नहीं होती थी। जो व्यक्ति राजा के आदेश की अवहेलना करता था, उसे राजद्रोह (Sedition) का दोषी माना जाता था।
उस काल में राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था, जिसे जनता को न्याय देने के लिए ईश्वर द्वारा भेजा गया समझा जाता था। राजा के दरबार में वादी (Plaintiff) को अपना पक्ष स्वयं प्रस्तुत करना पड़ता था, इसके बाद राजा प्रतिवादी का पक्ष सुनता था। न्याय प्रशासन में राजा की सहायता एवं परामर्श के लिए मंत्रियों की परिषद तथा विद्वानों/शिक्षाविदों का एक समूह होता था।
ब्रिटिश काल के दौरान (During British Period):
ईस्ट इंडिया कंपनी, जिसने 16वीं शताब्दी में भारत में अपना व्यापार आरंभ किया था, धीरे-धीरे भारत के प्रमुख नगरों पर अधिकार करने लगी और अपने नियंत्रण वाले क्षेत्रों का प्रशासन स्वयं करने लगी। कंपनी ने अपने न्यायालय (Company Courts) स्थापित किए, जिनका संचालन ऐसे व्यक्तियों द्वारा किया जाता था जिन्हें विधि का कोई विशेष ज्ञान नहीं था। उस समय विधि का ज्ञान न रखने वाले व्यक्तियों को भी न्यायालयों में वकालत करने की अनुमति थी।
भारत में पहली बार विधि व्यवसाय को औपचारिक मान्यता एवं विनियमन चार्टर अधिनियम, 1774 द्वारा किया गया। इस अधिनियम के अंतर्गत अंग्रेज़ वकीलों को कलकत्ता के सुप्रीम कोर्ट में वकालत करने की अनुमति दी गई। इसके पश्चात् 1801 में मद्रास सुप्रीम कोर्ट तथा 1823 में बॉम्बे सुप्रीम कोर्ट में भी अंग्रेज़ वकीलों को वकालत की अनुमति दी गई, किंतु भारतीय वकीलों को इन न्यायालयों में वकालत करने की अनुमति नहीं थी। (1826 में इन तीनों सुप्रीम कोर्टों को समाप्त कर उनके स्थान पर उच्च न्यायालयों (High Courts) की स्थापना की गई।)
1865 में स्पेशल राइट्स एक्ट द्वारा मद्रास, बॉम्बे एवं कलकत्ता उच्च न्यायालयों को अधिवक्ताओं की मान्यता एवं अधिवक्ताओं की सूची (Roll of Advocates) तैयार करने हेतु नियम बनाने का अधिकार प्रदान किया गया। 1879 में लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट के माध्यम से अन्य उच्च न्यायालयों को भी इसी प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की गईं। इस अधिनियम के अनुसार इंग्लैंड में विधि की शिक्षा प्राप्त करने वाले व्यक्तियों को “एडवोकेट (Advocates)” तथा भारत में विधि की शिक्षा प्राप्त करने वालों को “वकील (Vakils)” कहा जाता था। “वकीलों” को उच्च न्यायालयों में वकालत करने की अनुमति नहीं थी।
1923 में सर एडवर्ड के नेतृत्व में एक अधिवक्ता समिति (Advocates Committee) का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य विधि व्यवसाय का अध्ययन कर उसमें सुधार हेतु सुझाव देना था। इस समिति ने प्रत्येक उच्च न्यायालय के लिए बार काउंसिल की स्थापना तथा “वकीलों” को उच्च न्यायालयों में वकालत की अनुमति देने की सिफारिश की। इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए 1926 में बार काउंसिल अधिनियम पारित किया गया। इस अधिनियम ने उच्च न्यायालयों में बार काउंसिलों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया। तथापि, अधिवक्ताओं के नामांकन (Enrolment) की शक्ति उच्च न्यायालयों के पास ही रही। बार काउंसिल की भूमिका केवल परामर्शात्मक थी तथा उसके द्वारा बनाए गए नियम तभी प्रभावी होते थे जब उन्हें उच्च न्यायालय की स्वीकृति प्राप्त होती थी।
स्वतंत्रता के बाद (After Independence):
स्वतंत्रता के पश्चात् 1951 में न्यायमूर्ति सी. आर. दास की अध्यक्षता में एक अधिवक्ता समिति का गठन किया गया, जिसका उद्देश्य विधि व्यवसाय से संबंधित समस्याओं का अध्ययन कर उनके समाधान हेतु सुझाव देना था। इस समिति ने निम्नलिखित सिफारिशें कीं—
अखिल भारतीय स्तर पर एक बार काउंसिल, अर्थात् बार काउंसिल ऑफ इंडिया, तथा प्रत्येक राज्य में राज्य बार काउंसिल की स्थापना की जाए।
अधिवक्ताओं के नामांकन (Enrolment) एवं उनके विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई (Disciplinary Powers) की शक्ति बार काउंसिल को प्रदान की जाए।
अधिवक्ताओं को बिना किसी भेदभाव के पूरे भारत में वकालत करने की अनुमति दी जाए।
पाँचवें विधि आयोग (Fifth Law Commission) ने भी इन सिफारिशों की समीक्षा कर उनके क्रियान्वयन की अनुशंसा की। इन सिफारिशों को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार ने 1961 में अधिवक्ता अधिनियम (Advocates Act, 1961) पारित किया। इस अधिनियम के अंतर्गत राज्यों में राज्य बार काउंसिल तथा केंद्रीय स्तर पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया की स्थापना का प्रावधान किया गया। वर्तमान समय में ये बार काउंसिलें देश में विधि व्यवसाय के विनियमन (Regulation) की जिम्मेदारी निभा रही हैं।
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